एक कवी के जैसे उसका कोमल सा मन था,
लेकीन युद्धभूमी मे वही रुद्रसा तांडव करता था |
पुरुषो की दुनिया मे जब औरत को कम समझा था,
तब उसी शंभु ने पत्नी को राजपाठ पढाया था |
शील जानने वाला वो शिलवंत, संस्कृतपंडित वो बुद्धिवंत,
एक भी लढाई हारने न वाला वो शौर्यवंत |
बचपन मे भी गया था, वो जवानी मे भी गया था,
दुष्मन के तट पे वो बस स्वराज्य बचाने ही गया था |
सभी सुखो को छोड के वो स्वराज्य के लिये खडा था,
सागर मे सेतू का संकल्प प्रभु श्रीराम के बाद बस शंभु ने ही किया था |
दुष्मन को हराने के लिये किया था जिसने गनिमी कावा,
वो धगधगती आग सा शिव का था छावा |
सामने था सिद्धी, औरंगझेब , फिरंगी ..था चिक्कदेवराजा,
उन सबपे भारी पडा था बस एक ही शंभूराजा |
चारो दिशा मे पिता का था गुणगान, जिनके सामने हमेशा था वंदन
उन्ही के पथ पे चलकर अमर हुआ शिवनंदन |
काल की चौकट पे भी नहीं हुई जिसकी पराजय,
मौत भी नतमस्तक है, वो बस एक ही शंभु मृत्युंजय |
कवी/लेखक : सुजित नामदेव तांबे
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