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छत्रपती संभाजी महाराज


छत्रपती संभाजी महाराज


एक कवी के जैसे उसका कोमल सा मन था,

लेकीन युद्धभूमी मे वही रुद्रसा तांडव करता था | 


पुरुषो की दुनिया मे जब औरत को कम समझा था,

तब उसी शंभु ने पत्नी को राजपाठ पढाया था |


शील जानने वाला वो शिलवंत, संस्कृतपंडित वो बुद्धिवंत,

एक भी लढाई हारने न वाला वो शौर्यवंत |


बचपन मे भी गया था, वो जवानी मे भी गया था,

दुष्मन के तट पे वो बस स्वराज्य बचाने ही गया था |


सभी सुखो को छोड के वो स्वराज्य के लिये खडा था,

सागर मे सेतू का संकल्प प्रभु श्रीराम के बाद बस शंभु ने ही किया था |


दुष्मन को हराने के लिये किया था जिसने गनिमी कावा,

वो धगधगती आग सा शिव का था छावा |


सामने था सिद्धी, औरंगझेब , फिरंगी ..था चिक्कदेवराजा,

उन सबपे भारी पडा था बस एक ही शंभूराजा |


चारो दिशा मे पिता का था गुणगान, जिनके सामने हमेशा था वंदन

उन्ही के पथ पे चलकर अमर हुआ शिवनंदन |


काल की चौकट पे भी नहीं हुई जिसकी पराजय,

मौत भी नतमस्तक है, वो बस एक ही शंभु मृत्युंजय |


कवी/लेखक : सुजित नामदेव तांबे






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