हर हर महादेव की खनक इस भारतवर्ष मे गुंजी थी |
जब बाल शिवबा ने रायरेश्वर मे स्वराज की शपथ ली थी ||
काबूल से बंगाल तक जिस औरंगजेब की सल्तनत थी |
वो भी अचंबित रह गया जब शिवबा ने उसको चुनौती दी थी ||
मन मे था तुफान आखिर क्यू नही सागर पे अपना राज इतने सालो से |
भारत के नौदल का आरमार बनाया फिर अपने तेज बुद्धी से ||
आलमगीर ने फिर भेजी सवारी मामा की, बोला शास्ता खान जला दुंगा प्रजा उस स्वराज की |
रात को उसिके घर मे घुसके किया वार शिवबा ने, आज भी लाल महल सूनाता है कहाणी उन कटे उंगलियो की ||
जन्मदिन पे बुलाके औरंगजेब ने जब धोके से अपमानीत करके बंदी बना लिया |
दरबार मे दहाडा शेर शिवबा आग्रा से बंधन तोड के उस अपमान का बदला लिया ||
पूछा सब ने स्वराज पे जान लुटाने वाले वो कोन शिलेदार है जी |
तब बोले मराठे सब के लिये बस एक ही नाम काफी है छत्रपती शिवाजी ||
बोला अफजल मै लाऊंगा सिवा को जिंदा या मुर्दा ये मेरा प्रण है |
तब शिवबा ने उसका पेट फाडके बताया पुरे जहाँ को की शेर शिवराज है ||
कवी/लेखक : सुजित नामदेव तांबे
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